परछाईं
ये अपनी ही परछाइयों में
क्या ढूंढ़ रहा है मन मेरा
ये. कौन सी है आरसी
किस दिशा में हूँ चल पड़ा
पग पग पर हैं इम्तिहान
डरना नहीं, ऐ मेरी जाँ
चोट खा कर समभलना
है हर ज़िंदगी की दास्ताँ
तू बढ़ाते जा अपने क़दम
आत्मविश्वास और दृढ़ता
को बना अपने हमदम
कम हो जायेगा हर फ़ासला
तेराअक्स है तेरे साथ साथ
सुन उसकी अन्नकही बात
अंतर्लीन बन जा ज़रा ज़रा
हर सवाल का जवाब मिल जाएगा
Pushpa Chaturvedi