अजीब दास्ताँ है ये
गुल ने कलियों से कहा,
मैं तुझ में था पहिले से छुपा,
तू ना जान सकी ये भेद मेरा ,
मेरा अंश तो है तुमसे ही बना,
ये है मेरी अजीब दास्ताँ ,
रब कैसा है ये करिश्मा ।
लैहरों ने समुनदर से कहा,
मैं तुम से अलग कभी थी ही नहीं ,
मैं तुम से निकली और हू तुम में बसी
मैं तुझ से हुई ,और हुँ तुझ पे फ़ना ,
ये है मेरी अजीब दास्ताँ ,
रब कैसा है ये करिश्मा ।
किरणों ने सूरज से कहा,
मुझे रोशनी तुमसे है मिली,
तेरी शक्ती है मुझ में भरी ,
मैं तुम्हारे ह्रदय से निकली ,
ये है मेरी अजीब दास्ताँ ,
रब कैसा है ये करिश्मा ।
कस्तूरी ने हिरन से कहा
तू ना हो इस तरह परेशान मेरी जान
यूं ना तू मुझे ढूँढ मेरी बात मान
मैं हूँ पैहिले से तुम में छुपी हुई
ये है मेरी अजीब दास्ताँ ,
रब कैसा है ये करिश्मा ।
आत्मा ने मन से कहा ,
तू देख नहीं मुझको सकता,
मैं हूं तुम्हारे दिल में बसी हुई,
तुम्हारे देह से हूँ मैं डकी हुई,
पहचान मुझे मूर्ख इन्सान ,
क्यों बाहर ढूँढता है भगवान ।
ये है अधभुत अजीब दास्ताँ
रब का बनाया सुन्दर गुलिस्ताँ।
कहाँ शुरू हुहा कहाँ ख़त्म हूआ
आज तक नहीं जान पाया इन्सान
जानने की ज़रूरत है भी नहीं
जो रब ने बनाया सब कुछ है हसीन
पुष्पा चतुर्वेदी
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