Tuesday 5 March 2013

काली घटाए

















रूठे हुए प्यार को मनाऊँ कैसे,
चाँद तारों को ज़मीन पर लाऊँ कैसे ,
क्यों छुप गए हो घने बादलों के पीछे,
इन घनघोर घटाओ को हटाऊं  कैसे । 

काली घटाए  क्या जाने मेरे दिल की हालत,
ये तो हैैं मेरी मुसकराहटों पर  फिदा,
इन मुसकराहटों को तो है ग़म छुपाने की आदत,
मिलती है दबे हुए आँसुओं को सिसकने से राहत । 

बेवजह हस्ती रहती हूँ मैं  हरदम ,
दिल नहीं मानता बेवफ़ा हो गए हो तुम,
तड़पाने में क्यों तुम्हें आ रहा है मज़ा ,
ये इश्क़ करने की मिली है कैसी सज़ा । 

हवाओं  इन काले  बादलों को उड़ा के ले जाओ,
शायद सूरज की किरणें  उन्हे  मेरे पास ले आएँ । 

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